सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग क्या है?
किसी भी इंटेंजीबल प्रोग्राम को तैयार करने की प्रक्रिया को सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग कहते हैं
जिसमें स्टेप बाय स्टेप हमारे प्रोग्राम या डेवलपर एक प्रोसेस करता है और प्रोसेस करके एक intangible प्रोडक्ट को रेडी कर देता है ।
ये इंटेंजीबल product designing और documentation को मिलाकर बनती है।
सॉफ्टवेयर रिक्वायरमेंट स्पेसिफिकेशन या ब्लू प्रिंट
सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में सॉफ्टवेयर डिजाइनिंग दो प्रकार से होती है
फिजिकली => DFD और फ्लोचार्ट
लॉजिकल => कोड और एल्गोरिदम
सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग प्रोसेस( प्रक्रिया) =>
1) Feasibility study and communication => सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में Feasibility study and communication एक प्रकार की प्रोसेस है।
प्रोसेस के अनुसार यूजर और डेवलपर के बीच में एक मीटिंग होती है । जिसमें यूजर अपने अपनी एप्लीकेशन के अनुसार प्रोग्रामर को रिक्वायरमेंट के बारे में बताता है । और प्रोग्राम और उस रिक्वायरमेंट को अपने पास सेव करके रखता है और उसी प्रकार प्रोग्रामर भी यूजर को अपने आवश्यकता को बताता है।
इस प्रोसेस को Feasibility study and communication कहते हैं।
2) रिक्वायरमेंट एनालिसिस => इस प्रोसेस में यूजर के द्वारा बताए गए आवश्यकता को प्रोग्रामर अपने टीम मेंबर के साथ डिस्कस करता है , कि हमारे यूजर की आवश्यकता क्या है । उस आवश्यकता के अनुसार प्रोग्रामर या डेवलपर पूरी समस्या का एनालिसिस करते हैं या यूजर की प्रॉब्लम को पूरी करने की कोशिश करता है।
3) सिस्टम एनालिसिस => इस प्रोसेस में यूजर के रिक्वायरमेंट के अनुसार डेवलपर अपने प्रोग्राम आज अपने डिजाइनर और अपने टीम मेंबर को रेडी करता है।
सिस्टम एनालिसिस प्रोसेस में ही डेवलपर द्वारा उस पूरे प्रोजेक्ट को प्लान कर लिया जाता है । जिसे प्रोजेक्ट प्लानिंग भी कहा जाता हैं ।
4) डिजाइनिंग => यूजर की रिक्वायरमेंट के अनुसार डेवलपर अपने प्रोजेक्ट या एप्लीकेशन को लॉजिकली और फिजिकली डिजाइन करता है । इस तरह के डिजाइन को एप्लीकेशन के फ्रंट एंड और बैंक एंड कहा जाता है ।
5) कोडिंग => यूजर की आवश्यकता के अनुसार डेवलपर्स अपने मॉड्यूल को डिजाइन करता है । इन्हीं डिजाइनिंग के अनुसार प्रोग्रामर एप्लीकेशन के लिए सोर्स कोड को राइट करता है जिसे हम प्रोग्रामिंग कहते हैं।
6) टेस्टिंग => प्रोग्रामर इस प्रक्रिया में अपनी एप्लीकेशन को error less करने के लिए कई तरह की टेस्टिंग करता है | जिससे उसके एप्लीकेशन में यूजर को किसी भी तरह की प्रॉब्लम ना हो जैसे ब्लैक बॉक्स टेस्टिंग, वाइट बॉक्स टेस्टिंग, फंक्शनालिटी टेस्टिंग, यूनिट टेस्टिंग,
7) इंटीग्रेशन => सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग प्रक्रिया में जब हम एक मॉड्यूल को दूसरे मॉड्यूल के साथ प्रोग्राम के माध्यम से एक corelate करते हैं इस प्रोसेस को इंटीग्रेशन कहा जाता है |
इंटीग्रेशन के माध्यम से एक प्रोग्राम का रिलेशन दूसरे प्रोग्राम से होता है | जिसमें हम अपनी एप्लीकेशन को एक सही फ्लो दे पाते हैं और वह एप्लीकेशन हमारे यूजर के लिए बहुत ज्यादा एप्लीकेबल होती है |
8) मेंटेनेंस=> यह सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की एक ऐसी प्रोसेस है जिसमें हमारा प्रोग्रामर या डेवलपर यूजर की रिक्वायरमेंट के अनुसार अपने एप्लीकेशन के प्रोग्राम में चेंजेस करता है । एप्लीकेशन में दो तरह के चेंजेस कर सकता है पहला पहला चेंज फिजिकल और दूसरा लॉजिकल इस प्रक्रिया को बनाने के बाद प्रोग्रामर अपने अपने एप्लीकेशन को मेंटेन करता है ।
9) अपडेट=> सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में यह प्रोसेस यूज़र के रिक्वायरमेंट के अनुसार हमारे प्रोग्रामर ने जिस तरह के implementation किए हैं उसे अपडेट प्रोसेस कहा जाता जाता है
डिप्लॉयमेंट => जब हमारा प्रोग्राम प्रोग्रामर के द्वारा पूरी तरह से तैयार कर लिया जाता है, तो इस प्रोग्राम को या एप्लीकेशन को यूजर को यूज करने के लिए दे दिया जाता है
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